अभिव्यक्ति
सुमंगलम् संस्कृति, अध्यात्म, ज्ञान-विज्ञान-संस्कार से प्रेरित सेवाभावी महापुरुषों, संत, ज्ञानी-विज्ञानी, त्यागी, तपश्वी, ऋषि-मुनि, गृहस्थों के जिन्होने संसार मर्म को समझा जिनकी प्रेरणाश्रोत तुलसीवाणी-”परहित सरिस धरम नही भाई, पर पीड़ा सम नही अधिमाही” के भाव प्रकाश में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की सुमंगल सोच लिए सबका साथ-सबका विकास एकात्म मानव वाद का भारतीय दर्शन की दुनिया मे मानवीय दृष्टिकोण से सबके सुख-शान्ति-समृद्धि का प्रयास भारतीय ग्रंथों के आधार पर समाज में सेवा साधना जिसकी व्याख्या बजरंग लाल जी ने भारतीय संस्कृति सोच के आधार पर किया है। जिसकी अभिव्यक्ति का प्रकल्प है सुमंगलम् सेवा साधना संस्थान। वर्ष प्रतिपदा 2004 में देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में सुमंगलम् की स्थापना हुई।